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आ चलें छूने छितिज काेे...!

Updated: May 26, 2022

आ चलें छूने क्षितिज को, आ चलें हरने तिमिर को।

धरती-अम्‍बर का मेल है जो, नैराश्‍य दु:ख का खेल है जो।।

अपनी प्‍यास -तृष्‍णा दूसरों को बॉंटने हमें क्‍या अधिकार है?

यही है मूल उसका मन में जो, शोक का अथाह पारावार है।

स्‍नेहिल झिलमिल सितारों ने, कब अंगारा बरसाया है?

फिर कारण है क्‍या कि, मानव के मन में दानव समाया है?

आ चलें छूने क्षितिज को...!

देखो धरती से दूर गगन में, चमका एक सितारा है।

झिलमिल करती ऑंखें उसकी, कहती हैं उजाला उसे भी प्‍यारा है।

कल-कल करती नदियाँ देखो, नित जीवन के गीत सुनाती हैं।

नीड़ का तिनका ले गगन में उड़ती, चिडि़या भी यही गीत सुनाती है।।

आ चलें छूने क्षितिज को...!

कर संघर्ष विकट, पार गगन के जाना होगा।

घने अंधकार से लड़, उजाला जगमगाना होगा।

जब जीवन के प्रति, आस्‍था मन में जागृत होगी।

तब मोह छोड़, कर्म की ओर लौटेगा योगी।।

आ चलें छूने क्षितिज को...!

#Balm_Pahad
तेरे ढलने में भी इक कशिश है...!

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